नई दिल्ली. यह समय है 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध का जब बांके मराठे हिंदुस्तान के मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब के सामने डट कर खड़े हो गए थे. लेकिन दिल्ली के तख़्त की ताक़त कभी कम ही नहीं होती थी. बस उनकी राह का रोड़ा था कोंढाणा का किला जिसको जीतकर मुग़ल सेना आराम से दक्षिण की तरफ कूच कर सकती थी.
ऐसे में शिवाजी (शरद केलकर) को ना चाहते हुए भी अपने सबसे विश्वासपात्र…