बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
असरार उल हक़ मजाज़ यानी मजाज़ लखनवी का यह शेर उर्दू शायरी में उस बड़े बदलाव की ताकीद करता है, जब उर्दू शायरी में माशूका के जुल्फों के उलझनों से अधिक महत्व दुनियावी उलझनों को दिया जाने लगा था. मजाज़ ने…