
वो ब्रिटिश हुकूमत का दौर था, शहर सोने को होता था तो दालमंडी की गलियां जग जाती थीं. घुंघरूओं के बीच नाचती तवायफें, कलाकारों की दुनिया थी ये. खूबसूरत तवायफों को देखकर ही शायद गोरों ने इसे नाम दिया था डॉल मार्केट.
यहां कोई भी बेहिचक-बेझिझक आ जा सकता था. वक्त बीता, तवायफों को…