
आज 1 मई नहीं बल्कि 1 अप्रैल है, मजदूर दिवस नहीं, मूर्ख दिवस. न जाने ये नारा कब से चलता आया है- दुनिया के मजदूरों एक हो. मजदूर कभी एक नहीं हुए. दूसरी तरफ `दुनिया के मूर्खों एक हो’ का नारा कभी लगा नहीं. लेकिन, मूर्ख इस तरह एक हुए कि देखते-देखते पूरी दुनिया उन्हीं की हो गई.
एक समय था…