कितनी मामूली हसरतें होती है एक साधारण आदमी की। मेहनत के पसीने से बरक्कत की दो रोटियां, गुजारे लायक छत, बच्चों को तालीम मिल जाए और सोते हुए खिड़कियों के कांच का टूट जाने का अंदेशा ना हो। डर न लगे घर से बाहर निकलते हुए। ईश्वर और अल्लाह के नाम पर उठाई हुई दीवार चकनाचूड़ ना कर दे आदमी होने का भ्रम। 23 फरवरी एक तारीख नहीं बल्कि एक सबक है जिससे ये साबित…