कंकरियाँ जिनकी सेज सुघर, छाया देता केवल अम्बर, विपदाएँ दूध पिलाती हैं, लोरी आँधियाँ सुनाती हैं। जो लाक्षा-गृह में जलते हैं वे ही शूरमा निकलते हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की अमर रचना रश्मिरथी की यह पंत्तियां महाभारत के परिपेक्ष्य में थी। जिसके छंद आज भी प्रासंगिक हैं। महाभारत के बार में यह कहा जाता है कि ये कहानी हर दौर की कहानी है।…