ये 1977 की बात है। सर्द वाली दिसंबर की रात जिसकी गवाह बनी। घड़ी की सुईंयां एक दूसरे को छूने को बेकरार थीं, लेकिन इसमें एक घंटे का वक्त शेष रह गया था। भारतीय डाक विभाग के तृतीय श्रेणी के एक कर्मचारी प्रभुदयाल के घर पर दो लोगों की दस्तक होती है। दरवाजा खोलने पर प्रभुदयाल के सामने गले में मफलर लगाए, लगभग गंजा सा एक अधेड़ उम्र का शख्स खड़ा था। उसकी…