खेमलता वखलु
25 अक्टूबर, 1947, पतझड़ का मौसम था, बकरीद की तैयारी जोरो शोरों पर थी, लोग जल्दी जल्दी अपने मेवे के खेतों का काम पूरा करने में लगे हुए थे जिससे वो हंसी-खुशी अपना त्यौहार मना सकें. सभी लोग- हिंदु, मुस्लिम, सिक्ख, और ईसाई इस बात से पूरी तरह बेखबर थे कि उनके घर के बाहर क्या हो रहा है. उन्हें इस बात का ज़रा सा भी इल्म नहीं था कि कोई अनहोनी उनकी तरफ रुख…