मन की कल्पना को रेशम के कपड़ों पर सुनहरे धागों से उतारने वाला बुनकर आज उदास है. जो हाथ कभी रेशम के ताने-बाने बुनते नहीं थकते थे आज वह आंख के आंसू पोंछकर थक हार कर-हताश हो गए हैं.
बनारसी साड़ी ही तो थी जिसे पहन कर दुल्हन किसी देवी सी डोली में बैठती थी. बनारसी साड़ी ही थी जिसके…